अलमदद पीराने पीर LYRICS
रुतबा ये विलायत में क्या ग़ौस ने पाया है
अल्लाह ने वलियों का सरदार बनाया है।
है दस्त-ए-अली सर पर हसनैन का साया है,
मेरे ग़ौस ने ठोकर से मुर्दों को जिलाया है।
अलमदद पीराने पीर ग़ौस-उल-आज़म दस्तगीर।
लाखों ने उसी दर से तक़दीर बना ली है,
बग़दादी सरवर की हर बात निराली है।
डूबी हुई कश्ती भी दरिया से निकाली है,
ये नाम अदब से लो, ये नाम जलाली है।
अलमदद पीराने पीर ग़ौस-उल-आज़म दस्तगीर।
हर फिक्र से तुम होकर आज़ाद चले जाओ,
ये कहकर लबों पे तुम फ़रियाद चले जाओ।
मिलना है अगर तुमको वलियों के शाह से,
ख्वाजा से इजाज़त लो, बग़दाद चले जाओ।
अलमदद पीराने पीर ग़ौस-उल-आज़म दस्तगीर।
मिलने को शम्मा से ये परवाना तड़पता है,
क़िस्मत के अंधेरों में दिन-रात भटकता है।
इस इश्क-ए-हक़ीक़ी में इतना तो असर आए,
जब बंद करूं आंखें, बग़दाद नज़र आए।
अलमदद पीराने पीर ग़ौस-उल-आज़म दस्तगीर।
या ग़ौस करम कर दो, या ग़ौस करम कर दो,
अब दीन की दौलत से दामन को मेरी भर दो।
बस इतनी गुज़ारिश है, बस एक नज़र कर दो,
बग़दाद की गलियों में छोटा सा मुझे घर दो।
या ग़ौस फ़लस्तीनी पर अब नज़र-ए-करम कर दो,
फितना-ए-यहूदी का अब सर को क़लम कर दो।
आदा की निगाहें हैं फिर मस्जिद-ए-अक्सा पर,
अब दुश्मन-ए-अक्सा को दुनिया से ख़त्म कर दो।
अलमदद पीराने पीर ग़ौस-उल-आज़म दस्तगीर।
एक बार बुलाया है, हर बार बुलाएंगे,
इस साल यकीनन हम बग़दाद को जाएंगे।
बचपन से मेरी मां ने मुझको ये सिखाया है,
आए जब कोई मुश्किल, या ग़ौस पुकारा कर।
क़ुरआन की आयत की तफसीर है ग़ौस-ए-पाक,
अल्लाह से जुड़ने की ज़ंजीर है ग़ौस-ए-पाक।
अरबाब-ए-विलायत के भी पीर हैं ग़ौस-ए-पाक,
सुल्तान-ए-मदीना की तस्वीर हैं ग़ौस-ए-पाक।
अलमदद पीराने पीर ग़ौस-उल-आज़म दस्तगीर।
मेरे ग़ौस पिया पल में मुर्दों को जिलाते हैं,
और चोरों को भी पल में अब्दाल बनाते हैं।
गोया कि वहाबी के ऐवान को ढहाते हैं,
जब ग़ौस के दीवाने महफ़िल को सजाते हैं।
अलमदद पीराने पीर ग़ौस-उल-आज़म दस्तगीर।
अंदाज़ बयां उनका हम कर नहीं पाएंगे,
अजमेर से होकर हम बग़दाद को जाएंगे।
जब आएगी बला हम पर, हम उनको बुलाएंगे,
तुम दिल से सदा तो दो, वो हाथ बढ़ाएंगे।
जब ग़ौस के रोज़े पर सर मेरा झुका होगा,
गुलशन मेरी क़िस्मत का भर-चढ़ के हरा होगा।
गर्दिश में निसार अपनी क़िस्मत का सितारा है,
या ग़ौस करम कर दो, मांगा ये तुम्हारा है।
ऊँचा है किया रब ने रुतबा शाह-ए-जीलान का,
है चारसू आलम में चर्चा शाह-ए-जीलान का।
दुनिया के मसाइब से घबराता नहीं हरगिज़,
नारा ये लगाता है शैदा शाह-ए-जीलान का।
अलमदद पीराने पीर ग़ौस-उल-आज़म दस्तगीर।
मौला की इनायत से जो ग़ौस का मांगता है,
ये बात हक़ीक़त है हर वक़्त वो कहता है।
बग़दाद की गलियों में खुशबू है मदीने की,
वलीयों के शहंशाह का दरबार महकता है।
मिल जाओ रज़ा ख़ां से, क़िस्मत को जगा देंगे,
वो शहर-ए-बरेली से इक तुमको पता देंगे।
अजमेर चले जाओ, बग़दाद दिखा देंगे,
फिर ग़ौस पिया मेरे आका से मिला देंगे।
अलमदद पीराने पीर ग़ौस-उल-आज़म दस्तगीर।
आऊं तेरी चौखट पर मैं कश मुकद्दर से,
बढ़ जाए मेरा रुतबा फिर धरा सिकंदर से।
बिन मांगे मेरी झोली इक आन में भर जाए,
ख़ैरात मदीने की मिलती है तेरे दर से।
अलमदद पीराने पीर ग़ौस-उल-आज़म दस्तगीर।
अल्लाह की रहमत से वलियों के वली तुम हो,
ज़हरा के गुलिस्तान की पुरलुत्फ़ कली तुम हो।
हो प्यारे नबी के तुम और इब्ने अली तुम हो,
बग़दाद के वली हो और ग़ौस-ए-जली तुम हो।
मर्दों को जिलाया है, कश्ती को तिराया है,
एक पल में ग़रीब को भी सुल्तान बनाया है।
रहज़न को विलायत के मंसब पे बिठाया है,
ऐ ग़ौस-ए-जली तूने ऐजाज़ ये पाया है।
तूफ़ान में कश्ती को साहिल पे लगा दीजिए,
सदके में मुहम्मद के बिगड़ी भी बना दीजिए।
एक उम्र से हसरत है सीने में, मिटा दीजिए,
बग़दाद बुला लीजिए, दर अपना दिखा दीजिए।
अलमदद पीराने पीर ग़ौस-उल-आज़म दस्तगीर।
दीवाना-ए-ग़ौस का अंदाज़ निराला है,
इनके ही सदके में हर सम्त उजाला है।
मेरे मिसरी शाह बाबा तो सबसे निराले हैं,
बग़दाद का एक मोती उसी यहां निकाले हैं।
अलमदद पीराने पीर ग़ौस-उल-आज़म दस्तगीर।