अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन LYRICS
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
खुशबू से मुअत्तर है गुलदाने मोईनुद्दीन
भारत की जबीं पर है अहसान-ए-मोईनुद्दीन
हो कैसे बयां मुझ से अब शान-ए-मोईनुद्दीन
हर एक ज़ुबां पर है उनवान-ए-मोईनुद्दीन
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
एक दश्त को ख़्वाजा ने गुलज़ार बनाया है
एक वादी-ए-ज़ुल्मत को ज़ौबार बनाया है
अल्लाह ने ख़्वाजा को मुख्तार बनाया है
कुल हिंद के वलियों का सरदार बनाया है
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
सूरज को भी शर्माए ज़र्रा मेरे ख़्वाजा का
दरिया को डुबो दे एक कतरा मेरे ख़्वाजा का
है हिंद की हर शै पर कब्ज़ा मेरे ख़्वाजा का
ख़ुश्की मेरे ख़्वाजा की, दरिया मेरे ख़्वाजा का
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
खुर्शीद-ए-ज़मीं तुम हो, महताब-ए-गगन तुम हो
ज़हरा के लहू, इब्ने सुल्तान-ए-ज़मन तुम हो
अल्लाह की रहमत से बख्शिश की किरन तुम हो
अजमेर की धरती पर और जल्वा फिगन तुम हो
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
अब क़ल्ब-ओ-नज़र सब कुछ जागीर तुम्हारी है
हर दिल की सतह पर अब तस्वीर तुम्हारी है
हो कुफ़्र की गर्दन ख़म क्यूंकर न तेरे आगे
किरदार-ए-मुअज्ज़म जब शमशीर तुम्हारी है
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
गुल बन के महक उठा जो तुझ से जुड़ा ख़्वाजा
वो ग़र्क हुआ समझो जो तुझ से फिरा ख़्वाजा
क्यूंकर न हों गरवीदा हम तेरी बज़ुर्गी पर
नाज़ां है तेरे ऊपर जब पीर तेरा ख़्वाजा
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
सरकार ﷺ के जल्वों के फ़ैज़ान हो तुम ख़्वाजा
इस चिश्तिया गुलशन में ज़ीशान हो तुम ख़्वाजा
भारत की विलायत के सुल्तान हो तुम ख़्वाजा
हर दर्द के मारों के दरमान हो तुम ख़्वाजा
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
इस्लाम की शौकत को ख़्वाजा ने बढ़ा डाला
लाखों के दिलों में वो एक नूर जला डाला
“जयपाल” को भी मुस्लिम ख़्वाजा ने बना डाला
“चौहान” की शाही को मिट्टी में मिला डाला
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
अल्लाह ने बख्शा है आलम में तुझे एजाज़
मुरशिद को तेरे तुझ पर ऐ ख़्वाजा बड़ा है नाज़
है तेरी सख़ावत का शाहों से जुदा अंदाज़
झोली को मेरी भर दो ऐ मेरे ग़रीब नवाज़
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
शब्बीर ने कर्बला में इस दीन को बचाया है
इस दीन को ख़्वाजा ने फिर हिंद में लाया है
फ़ित्नों से रज़ा ने फिर जब दीन यह बचाया है
तब जाके कहीं हमने इस दीन को पाया है
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
“कश्मीर” से “तामिल” तक उसका ही इलाक़ा है
भारत का हर एक ज़र्रा उसका ही असासा है
कुर्सी पे कोई बैठे क्या इससे गरज़ हम को
ताहश्र मेरा ख़्वाजा इस हिंद का राजा है
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
रहमत की फ़ज़ाओं में बाख़ैर चले जाओ
दुनिया की महफ़िल से रुख फेर चले जाओ
मिलना है अगर तुम को भारत के शहंशाह से
लो इज़्न बरेली से अजमेर चले जाओ
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
गर्दिश से परेशान दिल हालात का मारा है
ग़म इस को सताए ये कब तुझ को गवारा है
तुग़्यानी में कश्ती है और दूर किनारा है
ऐ डूबतों के वाली अब तेरा सहारा है
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
लाखों को मेरे ख़्वाजा ने कलिमा पढ़ाया है
भारत के मुकद्दर को ख़्वाजा ने जगाया है
कश्कोल में ख़्वाजा ने दरिया को समाया है
अल्लाह की क़ुदरत का क्या जल्वा दिखाया है
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबींअल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के
ज़ुल्मत की नफ़स को फिर या रब तू धुआं कर दे
अजमेर के गुलशन से अब दूर ख़िज़ां कर दे
फ़त्तीन मुझावर को या राह-ए-हिदायत दे
या इन को ज़माने से बेनाम-ओ-निशां कर दे
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
है गुलशन-ए-हस्ती में निख़त मेरे ख़्वाजा की
सद शुकर कि है दिल में उल्फ़त मेरे ख़्वाजा की
कौनैन में गर तुझ को नुसरत की तमन्ना है
अय्यूब़ शिकस्ता कर मद्धत मेरे ख़्वाजा की
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
अय्यूब़ न भूलेगा ख़्वाजा तेरे अहसान को
सीराब किया तू ने उम्मत के गुलिस्तान को
पस्ती से बुलंदी दे फिर क़ौम-ए-मुसलमां को
तस्कीन-ए-अतम दे दे हर क़ल्ब-ए-परेशां को
अल-मदद ख़्वाजा-ए-दीन
हिंद के माह-ए-मुबीं
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