क़ल्ब को उसकी रुएयत की है आरज़ू LYRICS
क़ल्ब को उसकी रुएयत की है आरज़ू
जिस का जल्वा है आलम में हर चार सू
बल्कि ख़ुद नफ़्स में है वो सुब्हानहू
अर्श पर है मगर अर्श को जुस्तजू
अल्लाहु अल्लाहु अल्लाहु अल्लाहु…
अर्श वा फर्श वा ज़मीं ओ जहात अए ख़ुदा
जिस तरफ़ देखता हूँ है जल्वा तेरा
ज़र्रे-ज़र्रे की आँखों में तू ही ज़िया
क़तरे-क़तरे की तू ही तो है आब्रू
अल्लाहु अल्लाहु अल्लाहु अल्लाहु…
सारे आलम को है तेरी ही जुस्तजू
जिन्न-ओ-इंस वा मलक को तेरी आरज़ू
याद में तेरी हर एक है कू-बा-कू
बन में वशी लगाते हैं ज़र्बाते हू
अल्लाहु अल्लाहु अल्लाहु अल्लाहु…
नग़्मा-संज़ान-ए-गुलशन में चर्चा तेरा
चहचहे ज़िक्रे हक़ के हैं सुबह-ओ-मसा
अपनी-अपनी चहक, अपनी-अपनी सदा
सब का मतलब है वाहिद की वाहिद है तू
अल्लाहु अल्लाहु अल्लाहु अल्लाहु…
तायेरान-ए-जिनां में तेरी गुफ़्तगू
गीत तेरे ही गाते हैं वो ख़ुश-गुलू
कोई कहता है हक़, कोई कहता है हू
और सब कहते हैं ला-शरीक-ला हू
अल्लाहु अल्लाहु अल्लाहु अल्लाहु…
ख़्वाबे-नूरी में आएं जो नूरे-ख़ुदा
बुका-ए-नूर हो अपना ज़ुल्मत-कदा
जगमगा उठे दिल, चेहरा हो पुर-ज़िया
नूरियों की तरह शुगल हो ज़िक्रे-हू
अल्लाहु अल्लाहु अल्लाहु अल्लाहु…