Nasheed

जो हो चुका है, जो होगा LYRICS


जो हो चुका है, जो होगा, हुज़ूर जानते हैं,
तेरी अता से ख़ुदा, हुज़ूर जानते हैं।

ख़ुदा को देखा नहीं और एक मान लिया,
के जानते थे सहाबा, हुज़ूर जानते हैं।

मुनाफ़िकों का अक़ीदा वो ग़ैबदान नहीं,
और सहाबियों का अक़ीदा, हुज़ूर जानते हैं।

ऐ इल्म-ए-ग़ैब के मुंकर, ख़ुदा को देखा है?
और तुझसे भी कहना पड़ेगा, हुज़ूर जानते हैं।

ख़बर भी है? के ख़बर सबकी है उन्हें कब से,
के जब न अब था न कब था, हुज़ूर जानते हैं।

कई उनके हाथ में क्या क्या, तुझे ख़बर न मुझे,
ख़ुदा ने कितना नवाज़ा, हुज़ूर जानते हैं।

वो मुमिनों की तो जानों से भी क़रीब हुए,
कहाँ से किसने पुकारा, हुज़ूर जानते हैं।

इसलिए तो सुलाया है अपने पहलू में,
के यार-ए-घर का रुतबा, हुज़ूर जानते हैं।

उमर ने तन से जुदा कर दिया था सर जिसका,
वो अपना है के पराया, हुज़ूर जानते हैं।

नबी का फैसला न मान कर वो जान से गया,
मिज़ाज़ उमर का है कैसा, हुज़ूर जानते हैं।

वही है पैकर-ए-शर्म और हया और ज़ुल्म नुरान,
मक़ाम उनकी हया का, हुज़ूर जानते हैं।

हैं जिसके मौला हुज़ूर, उसके हैं अली मौला,
अबु तुराब का रुतबा, हुज़ूर जानते हैं।

यह खुद शहीद हैं, बेटे नवाज़े पोते शहीद,
अली की शान-ए-यगाना, हुज़ूर जानते हैं।

मैं उनकी बात करूँ यह नहीं मेरी औकात,
के शान-ए-फातिमा ज़हरा, हुज़ूर जानते हैं।

जिनमें कौन हैं सरदार नौजवानों के,
हसन, हुसैन के नाना, हुज़ूर जानते हैं।

मलाइका ने किया यों तो सज्दा आदम को,
दर असल किस को था सज्दा, हुज़ूर जानते हैं।

कहाँ मरेंगे अबू जहल, उत्तबा और शीबा,
के जंग-ए-बदर का नक्शा, हुज़ूर जानते हैं।

वो कितना फासला था, और कलाम था कैसा,
आओ अदना और मैं आओ, हुज़ूर जानते हैं।

मिले थे राह में 9 बार किस लिए मूसा,
यह deed-ए-हक का बहाना, हुज़ूर जानते हैं।

मैं चुप खड़ा हूँ मुआज्जा पे सर झुके हुए,
सुनाऊँ कैसे फ़साना, हुज़ूर जानते हैं।

छुपा रहे हैं लगातार मेरे ऐबों को,
मैं किस क़दर हूँ क़मीना, हुज़ूर जानते हैं।

ख़ुदा ही जाने उबैद उनको है पता किया किया,
हमें पता है बस इतना, हुज़ूर जानते हैं।

नहीं है ज़ाद-ए-सफर पास जिन गुलामों के,
उन्हें भी दर पे बुलाना, हुज़ूर जानते हैं।

हरण ने ऊँट ने चिरियों ने की यही फरयाद,
के उनके ग़म का इलाज, हुज़ूर जानते हैं।

तेरी अता से ख़ुदा, हुज़ूर जानते हैं।तेरी अता से ख़ुदा, हुज़ूर जानते हैं।

नहीं है ज़ाद-ए-सफर पास जिन गुलामों के,
उन्हें भी दर पे बुलाना, हुज़ूर जानते हैं।

तेरी अता से ख़ुदा, हुज़ूर जानते हैं।

मैं उनकी बात करूँ यह नहीं मेरी औकात,
के शान-ए-फातिमा ज़हरा, हुज़ूर जानते हैं।

तेरी अता से ख़ुदा, हुज़ूर जानते हैं।

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