तू शम्मा-ए-रिसालत है (WITH TAZMEEN) LYRICS
कुर्बान तेरे कदमों पर, ऐ जाने-मसीहाना,
झुका है तेरे भौंहों में, वो ताज-सुलेमाना।
हर एक ने तुझे अपना सरदार-ए-शाह माना,
तू शम्मा-ए-रिसालत है, आलम तेरा परवाना,
तू माह-ए-नुबुव्वत है, ऐ जलवा-ए-जानाना।
मदहोश हुए गुलशन, रंगत को गुलाब उठे,
शम्स-ओ-कमर और अंजुम, पाने को वो तब उठे।
हुस्न-ए-जहाँ दर पर, लेने को शबाब उठे,
जो साक़ी-ए-कौसर के, चेहरे से नक़ाब उठे।
हर दिल बने मैख़ाना, हर आँख हो पैमाना।
अंदाज़ तेरा दीगर, आदत भी जुदा ठहरी,
बर्गोश जो आसी के, जौ का सदा ठहरी।
बीमार-ए-मोहब्बत की, बस एक बका ठहरी,
इस दर की हज़ूरी ही, इस्यान की दवा ठहरी।
है ज़हर-ए-मआसी का, तैबा ही शिफ़ाख़ाना।
मशहूर ज़माना है, ऐ अफ़्ज़-ए-अफ़ू तेरी,
बला से बला है, वो शान-ए-उलू तेरी।
करता है सना हर गुल, होकर बावज़ू तेरी,
हर फूल में बू तेरी, हर शम’अ में ज़ौ तेरी।
बुलबुल है तेरा बुलबुल, परवाना है परवाना।
अबू बक्र-ओ-उमर का, तो उस्मान का, हैदर का,
ख़्वाजा की छाती का, तो बग़दाद के लंगर का।
बे-ख़ुद में हुआ खाकर, टुकड़ा मेरे अख़्तर का,
पीते हैं तेरे दर का, खाते हैं तेरे दर का।
पानी है तेरा पानी, दाना है तेरा दाना।
दरबार-ए-नबी है ये, है ज़ात में यकताई,
उश्शाक़ ये क्या काबा, करता है जबीं साई।
चक्कर में पड़ी है क्यों, नज्दी तेरी बीनाई,
संग-ए-दर-ए-जाना पर, करता हूँ जबीं साई।
सजदा न समझ नज्दी, सर देता हूँ नज़राना।
दुनिया की मोहब्बत में, क्या खोया, किसे पाया,
बख़्शिश की ज़मानत का, परवाना तभी पाया।
ख़ाकर के मैं ठोकर, अब मौला तेरे दर आया,
गिर पड़ा के यहाँ पहुँचा, मर मर के इसे पाया।
छूटे न इलाही अब, संग-ए-दर-ए-जानाना।
वीरानाय-ए-दी में भी, गुलशन जो महकते कुछ,
बे-नाला-ए-अफ़गाँ हम, जैसे हैं मांगते कुछ।
हो चश्म-ए-तवज्जु अगर, हम पे तो मचलते कुछ,
वो कहते न कहते कुछ, वो करते न करते कुछ।
ऐ काश वो सुन लेते, मुझसे मेरे अफ़साना।
वलीयों से क़ुरबत है, ग़ुस्ताख़ से है दूरी,
सरकार-ए-रज़ा का सब, फैज़ान है ये रज़वी।
पढ़ता है बैअत के पाई, हम ऐ क़ादरी हर सुन्नी।
सरकार के जलवों से, रौशन है दिल-ए-नूरी।
ता हश्र रहे रौशन, नूरी का ये काशाना।
यूँ थाम के दामन को, मचला है सारे महशर,
देखे कोई अख़्तर का, ये नाज़-ए-गुलामाना।