दुरूद लब पर, ख्याल दिल में LYRICS
दुरूद लब पर, ख्याल दिल में,
और अश्क आँखों में आ रहे हैं।
हज़ूर के दर पे जा रहे हैं,
तो इस करीने से जा रहे हैं।
रसूले अक़रम ज़मीन-ए-रब पर,
किसी तरह ग़म निभा रहे हैं।
जहान-ए-तारीक में लहू से,
चराग़-ए-उल्फ़त जला रहे हैं।
चराग़ तेरा है, नूर तेरा,
बदन भी तेरा, लहू भी तेरा।
ये सब तेरी मिल्कियत है आका,
कि हम तो कर्ज़ा चुका रहे हैं।
हम अपनी नफ़्सानियत के चक्कर,
तुम्हारा हक़ क्या अदा करेंगे।
बस एक तुम्हारा करम है आका,
कि जिस पे तकिया लगा रहे हैं।
जनाब-ए-आदम भी कह रहे हैं,
मदद किसी और दर से मांगो।
कलीम और ईसा भी मेरे आका,
तुम्हारी जानिब ही आ रहे हैं।
बरोज़-ए-महशर तुम्हारा मुजरिम,
तुम्हारे दामन में आके छुपता।
मगर वहाँ औलिया जमा हैं,
जो शोर सुन-सुन के आ रहे हैं।
मैं सख़्त मायूस हो चुका था,
कि गौस-ए-आज़म पुकार उठे।
“मेरे आका, मेरे मुरीदों को,
जाने कब से बुला रहे हैं।”
हमारा ग़म-ख्वार भी है कोई,
किसी को हमसे भी है मोहब्बत।
तुम्हारी नातें सुना-सुना कर,
ज़माने भर को जता रहे हैं।
तेरी ग़ुलामी की ताबेदारी को,
बादशाही मुक़ाबला है।
कि बायज़ीद-ओ-जुनैद जैसे,
सिफारिशें लेकर आ रहे हैं।
तुम्हारी सरकार आला शाह में,
हुरूफ-ए-अश्रफ़ की आबरू क्या।
वहाँ तो हसन नात-ख़्वां हैं,
रज़ा भी नग़मे सुना रहे हैं।