नसीब चमके हैं फरशियों के LYRICS
नसीब चमके हैं फरशियों के,
कि अर्श के चाँद आ रहे हैं।
झलक से जिनकी फलक है रौशन,
वो शम्स तशरीफ ला रहे हैं।
मरहबा या मुस्तफा! मरहबा या मुस्तफा!
मरहबा या मुस्तफा! मरहबा या मुस्तफा!
निसार तेरी चहल-पहल पे,
हजारों ईदें रबीउल-अव्वल।
सिवाय इब्लिस के जहाँ में,
सभी तो खुशियाँ मना रहे हैं।
मरहबा या मुस्तफा! मरहबा या मुस्तफा!
मरहबा या मुस्तफा! मरहबा या मुस्तफा!
शब-ए-विलादत में सब मुसलमाँ,
न क्यों करें जान-ओ-माल कुरबाँ।
अबू लहब जैसे सख़्त काफिर,
खुशी में जब फैज़ पा रहे हैं।
मरहबा या मुस्तफा! मरहबा या मुस्तफा!
मरहबा या मुस्तफा! मरहबा या मुस्तफा!
ज़माने भर का ये क़ायदा है,
कि जिस का खाना उसी का गाना।
तो ने’मतें जिनकी खा रहे हैं,
उन्हीं के हम गीत गा रहे हैं।
मरहबा या मुस्तफा! मरहबा या मुस्तफा!
मरहबा या मुस्तफा! मरहबा या मुस्तफा!
जो क़ब्र में उनको अपनी पाऊँ,
पकड़ के दामन मचल ही जाऊँ।
जो दिल में रह के छुपे थे मुझसे,
वो आज जलवा दिखा रहे हैं।
मरहबा या मुस्तफा! मरहबा या मुस्तफा!
मरहबा या मुस्तफा! मरहबा या मुस्तफा!
मैं तेरे सदके, ज़मीन-ए-तैबा,
फ़िदा न हो तुझ पे क्यों ज़माना।
कि जिनकी ख़ातिर बने ज़माने,
वो तुझ में आराम पा रहे हैं।
मरहबा या मुस्तफा! मरहबा या मुस्तफा!
मरहबा या मुस्तफा! मरहबा या मुस्तफा!