Nasheed
मेरी उल्फ़त मदीने से यूं ही नहीं LYRICS
मेरी उल्फ़त मदीने से यूं ही नहीं
मेरे आका का रोज़ा मदीने में है।
मैं मदीने की जानिब ना कैसे खिंचूं
मेरा दीन और दुनिया मदीने में है।
अर्श-ए-आज़म पे जिसकी बढ़ी शान है
रौज़ा-ए-मुस्तफ़ा जिसकी पहचान है।
जिसका हमपल्ला कोई मोहल्ला नहीं
एक ऐसा मोहल्ला मदीने में है।
फिर मुझे मौत का कोई ख़तरा ना हो
मौत क्या, ज़िंदगी की भी परवाह ना हो।
काश सरकार एक बार मुझसे कहें
आ, तेरा जीना-मरना मदीने में है।
सरवरे दीं-जहाँ से दुआ है मेरी
ये बुद-ओ-चश्म-ए-तर इल्तिजा है मेरी।
उनकी फ़ेहरिस्त में मेरा भी नाम हो
जिनका रोज़ आना-जाना मदीने में है।
जब नज़र सुए तैबा रवाना हुई
साथ दिल भी गया, साथ जान भी गई।
मैं मुनिर अब रहूंगा यहाँ किसलिए
मेरा सारा असासा मदीने में है।