Nasheed
हर नज़र कांप उठेगी महशर के दिन LYRICS
हर नज़र कांप उठेगी महशर के दिन,
ख़ौफ़ से हर कलेजा दहल जाएगा।
पर ये नाज़ उनके बंदे का देखेंगे सब,
थाम कर उनका दामन मचल जाएगा।
हर नज़र कांप उठेगी…
मौज कटरा के हमसे चली जाएगी,
रुख मुखालिफ हवा का बदल जाएगा।
जब इशारा करेंगे वो नामे ख़ुदा,
अपना बेड़ा भंवर से निकल जाएगा।
हर नज़र कांप उठेगी…
यूँ तो जीता हो हुक्मे ख़ुदा से मगर,
मेरे दिल की है उनको यक़ीनन ख़बर।
फ़ासले ज़िंदगी हुबहू दिन मेरा,
उनके क़दमों पे जब दम निकल जाएगा।
हर नज़र कांप उठेगी…
“रब्बे सल्लिम” वो फ़रमाने वाले मिले,
क्यों सताते हैं ऐ दिल तुझे वसवस्रे।
पुल से गुज़रेंगे हम वज्द करते हुए,
कौन कहता है पाँव फिसल जाएगा।
हर नज़र कांप उठेगी…
‘अख्तर-ए-ख़स्ता’ क्यों इतना बेचैन है,
तेरा आका शहनशाह-ए-कौनैन है।
लो लगा तो सही शाहे लो-लक से,
ग़म मुसर्रत के साँचे में ढल जाएगा।
हर नज़र कांप उठेगी…