हस्बी रब्बी जल्लल्लाह LYRICS
तेरे सदके में आका
सारे जहां को दीं मिला
बे दीनों ने कलमा पढ़ा
ला इलाहा इल अल्लाह
सिम्त-ए-नबी बू जहल गया
आका से उसने ये कहा
गर हो नबी बतलाओ ज़रा
मेरी मुट्ठी में है क्या
आका का फ़रमान हुआ
और फ़ज़्ल-ए-रहमान हुआ
मुट्ठी से पत्थर बोला
ला इलाहा इल अल्लाह
अपनी बहन से बोले उमर
ये तो बता क्या करती थी
मेरे आने से पहले क्या
चुपके-चुपके पढ़ती थी
बहन ने जब कुरआन पढ़ा
सुन के कलाम-ए-पाक-ए-ख़ुदा
दिल ये उमर का बोल उठा
ला इलाहा इल अल्लाह
वो जो बिलाल-ए-हब्शी है
सरवर-ए-दीन का प्यारा है
दुनिया के हर आशिक़ की
आँखों का वो तारा है
ज़ुल्म हुए कितने उन पर
सीने पे रखा पत्थर
फिर भी लब पर जारी था
ला इलाहा इल अल्लाह
दुनिया के इंसान सभी
शिर्क-ओ-बिदअत करते थे
रब के बंदे थे फिर भी
बुत की इबादत करते थे
बुत खाने हैं थर्राए
मेरे नबी हैं जब आए
कहने लगी मखलूक-ए-ख़ुदा
ला इलाहा इल अल्लाह
गुलशन कलमा पढ़ते हैं
चिड़िया कलमा पढ़ती है
दुनिया की मखलूक सभी
ज़िक्र-ए-ख़ुदा का करती है
कहते सभी हैं जिन-ओ-बशर
कहता शजर है कहता हज़र
कहता है पत्ता-पत्ता
ला इलाहा इल अल्लाह
मेरे नबी के ग़ुलामों का
रुतबा बड़ा है, शान बड़ी
चाहे ग़ौस-ए-आज़म हों
या हों दाता हजवेरी
याद नहीं तुम्हें वो मंज़र
ख़्वाजा ने जब ख़ुद चल कर
नब्बे लाख को पढ़वाया
ला इलाहा इल अल्लाह
ग़ज़वा-ए-ख़ैबर का मंज़र
मौला अली को बुलवा कर
आका ने दम फ़रमाया
फ़तह का झंडा अता किया
मौला अली ने उखाड़ दिया
ख़ैबर का बड़ा दरवाज़ा
लेकर ये प्यारा नारा
ला इलाहा इल अल्लाह
कहने लगा बू जहल के हम
काबे में तो जाते हैं
बुत खाने में मेरे भला
आप नहीं क्यों आते हैं
अपने क़ुदूम-ए-पाक को जब
बुत खाने में है रखा
बोल उठे वो झूठे ख़ुदा
ला इलाहा इल अल्लाह
आप वक़ार-ए-दीन-ए-मुबीन
आप सा आका कोई नहीं
आप के ही हैं ज़ेर-ए-नगीं
चाहे फ़लक हो चाहे ज़मीन
आप से आलम महक उठा
ख़तम हुई ज़ुल्मत की घटा
बच्चा-बच्चा कहने लगा
ला इलाहा इल अल्लाह
अहल-ए-मुसलमानों पर वो
ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद करते थे
शहर-ए-रब में रहते थे
बुत की इबादत करते थे
अहल-ए-कुफ्र को मक़्क़े से
भागने का रास्ता न मिला
चारों तरफ़ जब गूंज उठा
ला इलाहा इल अल्लाह
ख़ैबर में पहुंचे मौला
लड़ने जो आया मरहब था
अपनी ताक़त के ज़ोरों पर
वार भी अपने कर वो चुका
हैदर का इक वार हुआ
दो टुकड़े मक्कार हुआ
चारों तरफ़ से शोर हुआ
ला इलाहा इल अल्लाह